रोवे गऊ माई रे
बूचडख़ाने लग रह्या, आज म्हने कसाई रे
कठै म्हारा पूत भायला रोवे गऊ माई रे....
मरूधरा की भौम सपूतां वीरां री खाण है।
उणारे तरकस मांय नीत, गौरक्षा रा बाठ है।
म्हारी रखा इण जग में उण पूतां रे पाण है।
हिवड़े हाथ कसमां लेता, गऊ माता री आण है।
उण भोम रा पूत आज, क्यूं सुता तांण खुंटाई रे
कठै म्हारा पूत भायला रोवे गऊ माई रे.....
इन्दु म्हारे मन री पीड़ा, आज थनै सुणाऊ रे
म्हारे वंश रा उपकार किण भांत गिणाऊ रे।
उपकारा रे ईटा सूं सोने से महल चिणाऊं रे
उणरे आगे शिरबन्द, कान्हा रो मंदिर बणाऊं रे
सत् त्रेता अर द्वापर युग की बातां मनड़े आई रे
कठै म्हारा पूत भायला रोवे गऊ माई रे.....
रघुकुल मांय जाम्भोजी रे चरणे म्हारे आया रे
कहयो ऋषि पूत पावेला इण रे आशीष पाया रे
कैहरी आय ताडुक्यो, खावण म्हारी काया रे
खुद ने अरपण कीनो राजा तरकस धर छांया रे
म्हारी आशीष सूं ही रघुकुल गोद भराई रे
कठै म्हारा पूत भायला रोवे गऊ माई रे.....
द्वापर युग देवकी जायो, आयो म्हने चरावण ने
कान्हो जग में जाणिजे, म्हारो सागे जावण ने
कुचला दूध सहेजती, म्हारो बछड़ो कान्हो आवण ने
सुरगां सूं भी मूंगो गोकुल उण री याद सताई रे
कठै म्हारा पूत भायला रोवे गऊ माई रे.....
पण इण कलयुग मांय दमड़ो म्हारे घुटे हैं।
इंसान रो स्वार थपणो, म्हारी काया लूटे रे
म्हारी कंवली चमड़ी ने लाठियां सूं कूटे रे
भूखी तिरसी बन्ध्योड़ी, गायां घणाई खूंटे है।
तिनका तिनका सांरू फिरे, कान्हा थारी मांई रे
कठै म्हारा पूत भायला रोवे गऊ माई रे.....
आधुनिकता री दौड़, मिनखां ने लागे सुहणी रे
घी-दूध नै छोड़ मानखे पीवे बोतल पाणी रे
इण दौड़ र मांय सगला शहर-गांव अर ढ़ाणी रे
मिनखां मांय मिनखपणा री बातां गरत समाई रे
कठै म्हारा पूत भायला रोवे गऊ माई रे.....
भोजन सूं पेतला नीत, गऊ-ग्रास देवता रे
परभाते रोटी रै सागे, दही माखण लेयता रे
म्हारा पुरखा दिुगे बातां आ ही कैवता के
इण भोम दूध रे सागे, घी रा नाला बेवता रे
कठै म्हारा पूत भायला रोवे गऊ माई रे.....
म्हारो जायो बलदियो, देवे थाने कमाई रे
करसां सागे उणरा भी, पसीनो धरा समाई रे
बंजर भोम माथे व्है, हरी रंगत रमाई रे
मानव हित मांय उणा, पूरी उमर गंवाई रे
कुआं सूं पाणी निकाल, भेजता दूर ताई रे
कठै म्हारा पूत भायला रोवे गऊ माई रे.....
म्हारे रग-रग मांय देवता रो वास रे
तेतीस करोड़ देवता, अर कान्हा रो रास रे
देवतावां ने भी रेवती कामधेनूं सूं आस रे
म्हारो सहारो लेय कान्हो, बुलातो राधा ने पास रे
पण इण कलयुग म्हारो सारू आगे कुओ लोर खाई रे
कठै म्हारा पूत भायला रोवे गऊ माई रे.....
बिन स्वारथ बेचो म्हने, कसाईयों रे हाथ रे
नेणां सामी दिखण लागे म्हाने काल री रात रे
मेला मांये बेचण री फर्जी रसीद थमाई रे
कठै म्हारा पूत भायला रोवे गऊ माई रे.....
बूचडख़ाने गेट माथे जद उतारण लाग्या रे
बछड़ां पांव मरग्या, आधा टूटा भाग्या रे
डोरी-डंडा लेय मांथ सूं दस कसाई आया रे
बोल्या कमाई घणी होवसी, भाग आपणा जागया रे
पूंछड़ा खींच नीचे नवाया, हंस हंस ने कसाई रे
कठै म्हारा पूत भायला रोवे गऊ माई रे.....
जो मरग्या बीच सफर, उणरी जाणे सवाई रे
उंणारे नथुना मांयने तीखी लाठी घुसाई रे
बेसुधा ने उठावण सारू ठोके लाठी कसाई रे
कठै म्हारा पूत भायला रोवे गऊ माई रे.....
एक कसाई आयो इन्दु नली-डिब्बो हाथ रे
सिर माथे आय मार दी, एक जोर सूं लात रे
जीभड़ली फंस गया, म्हारा तीखा दांत रे
रक्तनिकालण सुई नली लगाई इण भांत रे
रक्तहीन काया रे आंख्या अंधारी छाई रे
कठै म्हारा पूत भायला रोवे गऊ माई रे.....
रण कसाई रो पाय ईशारो, दूजो ड्यूटी जाणी रे
उण रे हाथ बाल्टी मांय कलकत्तो पाणी रे
कवली काया सुलग गई लागी मौत आणी रे
जलया सगला देव अर सागे उणारी राणो रे
लाठी सूं पीटण लाग्यो काया ने देवण नरमाई रे
कठै म्हारा पूत भायला रोवे गऊ माई रे.....
उण रे बाद एक मशीन, आगे तीखी करवत रे
काली स्याही सूं मिट गयो, हिये आस रो खत रे
टुकड़ा-टुकड़ा कीना म्हारा होय व्है मदमस्त रे
डिब्बा-डिब्बा पैक होय, स्वाद बणी घण हस्त रे
सपने आय यों आप बीती गऊ इन्दु ने सुनाई रे
कठै म्हारा पूत भायला रोवे गऊ माई रे.....
खूंटी तांण क्यूं सूतो, मानखा अबे जाग रे
गौमाता ने निगत रह्या बूचडख़ाना नाग रे
भूखी-तिरसी मरे मावड़ी, हरखै चील काग रे
कठै म्हारा पूत भायला रोवे गऊ माई रे.....
घर घर माय राखणो, गऊ मां की तस्वीर रे
इण रे आशीष सूं बदलेता, आपणी तकदीर रे
अबे कोनी बरसेला गऊ की आख्या नीर रे
बजरंग बिश्रोई ने साची बात बताई रे
बूचडख़ाने लग रह्या आज म्हाने कसाई रे
कठै म्हारा पूत भायला रोवे गऊ माई रे.....
ओ३म् विष्णु ओ३म् विष्णु विष्णु
ओ३म् विष्णु विष्णु विष्णु विष्णु
गौमाता की सेवा करना प्रत्येक समाज का कत्र्तव्यधर्म है। जैसे श्रीगुरु जम्भेश्वरजी भगवान ने 27 वर्ष बाल्यकाल में गायें चराई।
बजरंगलाल बिश्रोई
नोखा तहसील अध्यक्ष
कामधेनु राष्ट्रीय गौरक्षा समिति
Sunday, October 31, 2010
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